Friday, October 1, 2010

Geeta chapter - 2.19

भक्तजनों पिछले अंक के साथ दूसरा अध्याय समाप्त हो गया और तीसरे अध्याय की शुरुवात करनी हे. लेकिन कुछ सवाल मन में उठ रहे होंगे की ऐसे कौन से वैदिक कर्म, कर्त्तव्य हे जिन्हें किसी भी हालत में करना ही चाहिए. क्या कभी कोई ऐसे ख़ास कर्म हो सकते हैं जिन्हें करने से हम पाप मुक्त हो सकते हे.
तीसरे अध्याय में इन्ही सब बातो पर चर्चा होगी.

ऐसे कोई चुने हुए कर्म नहीं हे जिनको करना हे बल्कि यह एक जीवन जीने का तरीका हे जिसे पूरी ज़िन्दगी निभाना पड़ेगा. ऐसा जीवन जो आपका तो भला करे ही, पर साथ ही आपसे इस दुनिया का भी भला हो. जो आपके जीवन को मोक्ष के करीब ले जाये. आपके संस्कार को समाप्त करे और आपको बंधन मुक्त करदे. यह सब कोई खास कर्म कर लेने से नहीं होगा, बल्कि इसके लिए जीवन को साधना ज़रूरी हे.

तीसरे अध्याय में श्री कृष्ण हमारे रोज़ के कर्म के बारे तो बता ही रहे हैं, साथ ही एक ज्ञानी के एक अज्ञानी के प्रति क्या कर्त्तव्य होते हैं, उनके बारे में भी बता रहे हैं. जब आप इस अध्याय को पढेंगे तो पाएंगे की हमारे जो माता पिता या दादा दादी जिस जीवन को जीते थे और जो रोज़ पूजा पाठ करना, भोग लगाना, उपवास रखना जैसे काम जो करते थे, उनका कितना बड़ा मतलब हे. यह सब वे ऐसे ही नहीं करते थे बल्कि यह सब वैदिक कर्म हे और हमारे कर्त्तव्य हे. आज हम लोग यह सब भूल गए और शर्म की बात यह हे की हम लोग उन लोगो का मजाक भी उड़ाते हे. खैर नुकसान हमारा ही हे, उन्होंने तो अपना जीवन सुधर लिया और मर कर अच्छी गति ही पाई होगी, लेकिन हमारा क्या होगा इसका कुछ पता नहीं. इसकी विस्तार से चर्चा हम अगले अंक से करेंगे जब श्लोक के साथ तीसरे अध्याय की शुरुवात होगी. यह अंक तो आपको इस अध्याय के बारे में एक जानकारी के लिए दे रहा हु.


जय श्री कृष्ण !!!