Thursday, November 4, 2010

Geeta chapter - 3.1

भक्तजनों में आप लोगो से माफ़ी चाहता हु की इतने दिनों तक आप सब को इंतज़ार करना पड़ा. मुझे समय ही नहीं मिल पाया, नौकरी, घर और दुसरे काम में इतना व्यस्त हो गया की लिखने का समय ही नहीं मिला.
कृपया आगे कभी इस तरह की देरी हो तो मुझे माफ़ करदे.

आज से गीता का तीसरा अध्याय शुरू करते हे. आज जिन श्लोक की चर्चा होगी, वे श्लोक अर्जुन की मन कि इस्थिथि को समझायेंगे. इन श्लोक के बाद ही असली श्लोक की शुरुवात होगी. वैसे तो अर्जुन की जो इस्थिथि इसमें बताई गयी हे, वैसी इस्थिथि हम सबकी होती हे, या आप में से बहुत लोगो की हो गयी होगी अब तक गीता पढ़कर.


ज्यायसी चेत कर्मनास्ते माता बुद्धिर-जनार्धन
तट किम कर्मणि घोरे मम नियोजयासी केशव !!!
MEANING : हे केशव जब आप ये मानते हे की ज्ञान कर्म से बड़ा हे तो आप क्यों मुझे इस महा पाप वाले कर्म को करने को कह रहे हे.

व्यमिश्रेनेव वाक्येन बुद्धि मोहयसीव में
तदेकं वाद निश्चित्य एन श्रेयो-हमप्नुयम !!!

MEANING : आपकी अलग-अलग बाते सुनकर मुझे कुछ समझ में ही नहीं रहा हे. आप कोई एक बात बताये जो मेरे लिए निश्चित ही लाभदायक हो.

न कर्म्नाम्नार्म्भन नैष्कर्म्य पुरुशोश्नुते
न च संयास्नादेव सिद्धिम समधिगाछ्ती !!!
MEANING : कोई भी व्यक्ति वैदिक कर्त्तव्य को पूर्ण करे बिना अपने कर्म के फल से नहीं बच सकता और उन कर्त्तव्य को करने से कभी निपुणता नहीं आएगी.


ही कश्चित् शंमापी जातु तिष्ठात्याकर्म्कुत
कार्यते हवाशः कर्म सर्वाः प्रक्रतिजैर्गुनैः !!!
MEANING : कोई भी व्यक्ति अपने आप को कर्म से दूर नहीं रख सकता, एक पल के लिए भी नहीं. इस संसार की प्रकृति के कारण हर व्यक्ति हर पल कोई कोई कर्म करने के लिए मजबूर रहता हे.


नियतं कुरु तवं कर्म ज्यायो हकार्मनाह
शरिर्यत्रपी च ते न प्रसिद्ध्येद्कार्मानाह !!!
MEANING : तुम्हे अपने वैदिक कर्त्तव्य निभाने चाहिए क्योंकि कर्म करने से अच्छा कर्म करना हे, कर्म नहीं करोगे तो अपने शरीर की देख-भाल तक नहीं कर पाओगे.


हम में से बहुत लोग यह सोचते होगे की कर्म करने से ही तो पाप लगेगा, तो क्यों कर्म करना ही छोड़ दे. और वैसे भी श्री कृष्ण कर्म से बढ़कर ज्ञान को बताते हे, तो फिर कर्म को करने में ही भलाई हे. रहेगा बांस और बजेगी बांसुरी. दूसरी बात यह की गीता के पहले अध्याय से तीसरे अध्याय तक जो कुछ भी पढ़ा, उस से हमे यह लगता हें की कई बाते एक दुसरे के विपरीत हे, कभी एक बात सही बताई जाती हे तो कभी दूसरी बात सही बता दी जाती हे. समझ ही नहीं आता हे की सही क्या हे और गलत क्या. इसी का जवाब हमे इन श्लोक में दिया जा रहा हे.

अर्जुन पूछ रहे हे की जब ज्ञान कर्म से बड़ा हे तो फिर मुझे क्यों पाप कर्म करने को कह रहे हे. इस तरह की अलग अलग बाते सुनकर मुझे कुछ समझ ही नहीं रहा हे. इसे समझने के लिए आपको यह समझना होगा की इस सृष्टि का निर्माण कैसे हुआ. सबसे पहले हे चेतना, सर्वत्र चेतना हे, और यही चेतना उर्जा का रूप धारण करती हे इस सृष्टि का निर्माण करने के लिए. और यही उर्जा अणु रूप धारण करती हें सृष्टि को आकार देने के लिए. इस तरह सृष्टि का निर्माण होता हे, अणु अलग अलग तरह से एक दुसरे से जुड़कर अलग अलग प्रकार के जीव और वस्तु बनाते हे, जीव में चेतना होने से उसमे जान होती हे और वस्तु में जड़ चेतना होने से उसमे जान नहीं होती. लेकिन यह ज़रूर समझा जा सकता हे की चेतना से उर्जा और उर्जा से अणु का निर्माण होता हे. वैज्ञानिक शोध से पता चला हे की अणु के कई हज़ार-लाख हिस्से करने पर भी उसका कोई ठोस स्वरुप नहीं मिल पाया हे. अणु को ले तो उसमे नयूत्रण, प्रोटोन, एलेक्ट्रों होता हे. और उनके बिच में काफी सारी खाली जगह होती, जब इनके भी कई हिस्से किये जाते हे तो पता चलता हे इनमे भी कई सारा हिस्सा खाली हे और अब तक कभी कोई ठोस हिस्सा मिला ही नहीं हे. आखिर में निष्कर्ष ये निकला हे की उर्जा एक जगह पर एकत्र होती हे और अपने घेराव के कारण इतनी सबल होती हे की उसे अलग करना बहुत मुश्किल हो जाता हे और बस यही उर्जा का समूह हमे अणु जैसा प्रतीत होता हे, असल में वो केवल उर्जा ही होती हे.

वैज्ञानिक अणु और उर्जा का सम्बन्ध तो जान पाए लेकिन उर्जा और चेतना का सम्बन्ध जानना अभी बाकि हे. इसमें चेतना ही ज्ञान स्वरुप हे, इसलिए वो सबसे बड़ी, और कर्म केवल अणु रूप के होने पर ही संभव हे इसलिए वो ज्ञान से छोटा. लेकिन यह भी सही हे की हम अणु रूप में चुके हे और इस प्रकृति का हिस्सा बन चुके हे, इसलिए हमे इस प्रकृति के खिलाफ जाकर कभी ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकेगा. और यही बात श्री कृष्ण अर्जुन को समझा रहे हे की ज्ञान बड़ा तो हे लेकिन हम अणु प्रकृति में होने के कारण कर्म के बिना उस ज्ञान को प्राप्त नहीं कर सकते. ज्ञान तो बहुत दूर की बात हे हम तो हमारे शरीर की देख-भाल भी नहीं कर पाएंगे अगर कर्म नहीं किया तो. लेकिन हर कर्म का कोई कोई फल हे इसलिए वैदिक कर्म करो जिसका फल ज्ञान हे. इसीलिए वैदिक कर्म का इतना महत्व हे.

कर्म को सही तरीके से करने में बहुत श्रद्धा और विश्वास का होना ज़रूरी हे, इसलिए हमे अच्छे कर्म यदा कदा करते रहना चाहिए ताकि कुछ अच्छाई तो हम में शेष रहे. हम इश्वर के कुछ करीब तो सके. जैसे रोज़ सुबह ११ बार मंत्र जाप करना या खाने से पहले इश्वर को भोग लगाना जैसे छोटे छोटे काम आपका बहुत भला करेंगे.

भक्तजनों अब आप समझ गए होंगे की श्री कृष्ण कोई दो विपरीत बात नहीं कर रहे, बल्कि हमारी समझ इतनी नहीं हे की उनकी बाते एक-दम से समझ सके.

आगे के श्लोक और भी ज्ञान वरदक होंगे, जिसकी हम अगले अंक में चर्चा करेंगे.

आप सबको दीपावली कि शुभ कामनाएं.

जय श्री कृष्ण !!!

3 comments:

  1. fdggfdgdsfdsghf fdg

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  2. Pls don't mistake me. I am really sorry to ask you about this, but I need to know the reason for this badly. Pls bear with me.

    Why is it so that all the religions showcase only pain and sorrow in the world.
    Pain & sorrow either imposed forcefully on someone or someone willingly accepting them on the name of "Bhakti".
    But the talk is always of Pain & sorrow, why is it so that they don't discuss on pleasure & happiness in a positive way.
    Whenever they discuss on Pleasure, they just tell us only one thing that it will lead us to sorrow.
    Only sorrow, sorrow and sorrow.

    Can you tell me is this approach towards life is correct and why ?

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  3. Hello Anonymous,
    Well you have a good observation and you need not be apologetic about asking this to me. Instead of answering this directly, I will give you one example. Tell me one thing, what are you or what will be your image in the eyes of a body builder. Probably a weak person as he is very strong. If he holds your arm in his grips, your arms will pain. No matter how many glasses of health drinks you take everyday, but your image will be of a weak person only as he knows that this things will not provide you that kind of strength that he is expecting or he has. But what will the weak person think, he will think that though I drink so many health drinks, still he says that I am weak, becoz he does not know what kind of strength that body builder has. The normal person's day just starts with a little bit of jogging and eating and sleeping, he will never know the feeling of being a body builder unless and until he starts exercising.

    The same is the case with us and those saints, no matter how happy we are, we will still be considered as un-happy because our happiness in not even a trillion part of their happiness. Moreover the vedas, and purans are the vision of those enlightened sages, it indicates the way they see this world. It is like seeing the world from their eyes. And that is why these vedas are respected to this extent, had these been written by people like us, no one would have respected them.

    So its not crying foul about enjoyment, but it indicates about the precious thing that we are missing. Like missing 1 lakh rupees for gaining 1 rupee.

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