देवन भवयातानें ते देवा भावयन्तु वहः
परस्परम भावयन्तः श्रेयः परम्वाप्स्यथा !!!
MEANING : उस परम इश्वर को समर्पित करने से देव तृप्त होते हे, और देव तृप्त होंगे तो वे तुम्हे तृप्त कर देंगे और तुम उस परमात्मा की कृपा के पात्र बनोगे.
इश्तन भोगन ही वो देवा दास्यन्ते याग्यभावितः
तैर्दात्तान्प्रदायेभ्यो यो भूंकते स्टें एव सहः !!!
MEANING : देव तुम्हारे भोग से और समर्पण से तृप्त होते हैं और तुम्हे वे सारी सुविधा उपलब्ध करवाते हैं जो तुम्हारी रोज़ मर्र्रा जीवन के लिए ज़रूरी हे. जो व्यक्ति इन सारी सुविधा का लाभ तो लेता हे मगर देव को तृप्त नहीं करता, वो व्यक्ति निश्चित ही चोर हे.
याग्यशिश्ताशिनाह संतो मुच्यन्ते सर्वकिलिम्शैः
भुज्यनते ते त्वघं पापा ये पचान्त्यात्मकरानत !!!
MEANING : जो व्यक्ति सात्विक भोजन पहले इश्वर को भोग लगाकर उसके बाद ग्रहण करता हे, वो व्यक्ति सारे पाप से मुक्त हो जाता हे, लेकिन वो व्यक्ति जो भोजन सिर्फ खुद के ग्रहण करने के लिए बनाता हे, वो व्यक्ति भोजन के रूप में केवल पाप ही ग्रहण कर रहा होता हे.
आन्नद भवन्ति भूटानी पर्जन्यादान्न्सम्भावः
यज्ञाद भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः !!!
MEANING : अन्न से जीव उत्पन्न होते हे, और अन्न उत्पन्न होता हे वर्षा से. वर्षा होती हे इश्वर को भोग लगने से, और भोग लगता हे वैदिक कर्म करने से.
एवं प्रवर्तितं चक्रम नानुवार्त्यातिः यह
अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पर्थ सा जीवति !!!
MEANING : हे अर्जुन, जो व्यक्ति वेदों में लिखे उपाय को नहीं अपनाता हे, वो व्यक्ति अपना जीवन मोह माया में लिप्त कर पाप करते हुए बर्बाद कर लेता हे.
तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचार
असक्तो हचरण कर्म परमाप्नोति पुरुषः !!!
MEANING : इसलिए बिना किसी मोह के, बिना किसी रूकावट के, अपने कर्त्तव्य को पूरा करो, क्योंकि उसी से तुम्हे परमात्मा की प्राप्ति होगी.
भक्तजनों पिछले अंक से चर्चा आगे बढ़ाते हे, आज के श्लोक वे हे जिनमे श्री कृष्ण उन वैदिक कर्म के बारे में बता रहे हे जिसमे कर्म को परमात्मा को समर्पित करना होता हे. देव तृप्ति के बारे में इसमें चर्चा की गयी हे. यह बातें आपको यकीन करने लायक नहीं लगेंगी. उन बातो को समझने के लिए थोडा विस्तार में जाना पड़ेगा. कुछ बातें विश्वास पर निर्भर करती हैं और विश्वास न होने पर वे बाते बेतुकी लगेंगी. चलिए चर्चा आगे बढ़ाते हैं.
कृष्ण कह रहे हैं की हर कर्म को इश्वर को समर्पित कर देने से देव तृप्त होते हैं. और उनके तृप्त होने से वे हम जीवो को तृप्त करते हैं. अगले श्लोक में कहा गया हे की देव समर्पण और त्याग से तृप्त होते. ऐसा कहा जाता हे की धर्म इस्थापित रहने तक देव बलवान होते हे और धर्म का नाश होते होते देव कमजोर पड़ने लगते हे. यह बाते तो ज्ञानी ही समझ सकते हे की वर्षा देवो की वजह से कैसे होती हे. विज्ञानं कुछ और तरीका बताता हे वर्षा होने का. संत कहते हैं की यह धरती एक बड़े हवन कुंड का काम करती हे, सूरज उसमे अग्नि का काम करता हे, समुद्र का पानी जो भाप बनकर उड़ता हे वो एक तरह का भोग हे. में यह तो नहीं कह सकता की यह सही हे या नहीं, क्योंकि मैंने ऐसा किसी शास्त्र में नहीं पढ़ा हे. लेकिन एक बात सही हे की हर बात एक ही "pattern" से बनी हे. ज्योतिष में हस्त रेखा को पढने का तरीका भी इस धरती पर मौजूद पहाड़, समुद्र, जैसे बातों की ही तरह होता हे, उसी तरह आयुर्वेद भी शरीर को मंदिर मान कर ही बिमारी का इलाज तलाश करता हे. बड़े बड़े ज्ञानी जो कुण्डलिनी शक्ति के बारे में जानते हे, वेह तो यह दावा करते हे की शरीर और ब्रह्माण्ड एक ही तरीके से बनाये गए हैं. शारीर को समझ लिया तो ब्रह्माण्ड समझ लिया. इन बातो को देखते हुए हवन कुंड वाली बात सही भी लगती हे.
खैर बात श्री कृष्ण ने कही हे और हम वहां पर हमारा आधा अधुरा ज्ञान लेकर सही गलत का फैसला नहीं ले सकते. मैंने कई उधाहरण देखे हे जहाँ पर पितृ दोष से नुकसान हुआ हे और उनको तृप्त कर देने पर वो परेशानी दूर हो गयी. इस पर ज्यादा चर्चा नहीं करेंगे क्योंकि ये अन्धविश्वास सा लगेगा. अगर ऊपर लिखे श्लोक का मूल अर्थ समझने की कोशिश करे तो पाएंगे की कर्म को इश्वर को समर्पित करने के बारे में ही यह सारे श्लोक हे. इस पर हम पहले भी चर्चा कर चुके हैं. लेकिन इस बार यहाँ पर उसका पूरा तरीका बताया गया हे की इश्वर को कर्म समर्पित करने पर भी कैसे हमारा भला हो सकता हे. यही बात देव तृप्ति के माध्यम से बताई गयी हे. हम कर्म समर्पित करते जाये, जब तक हमारे बुरे कर्म भुगतना बाकि होंगे, तब तक दुःख उठाना पड़ेगा और जैसे ही उन कर्मो का फल ख़त्म हुआ, वैसे ही हम सुखी होने लग जायेंगे और यह सब देवो के माध्यम से होगा.
भक्तजनों, आपको यह बाते शायद अजीब लगे, लेकिन हमारे सारे वेद, पुराण और तो और दुसरे धर्म में भी यही सब कहा गया हे. बस हमारे वेदों में उसको विस्तार से बताया गया हे. कुछ बात होगी तभी तो यह सब कहा गया होगा. वर्ना जैसे हम विश्वास नहीं करते, वैसे उस ज़माने में भी कोई विश्वास नहीं करता इन बातो पर, लेकिन उन्होंने किया, तो कोई तो बात होगी. अन्धविश्वास तो इन २००० हज़ार सालो में आया हे जब लोग उन बातो का सही मतलब भूल गए और सिर्फ प्रथा निभाने के लिए बिना मतलब समझे कर्म करने लगे. वैसे भी हमारा क्या बिगड़ जायेगा अगर हम इन छोटी छोटी बातो का ध्यान रखे, हमारा भला नहीं भी हुआ तो कोई नुकसान भी तो नहीं हे. और अगर ये बाते सही हुई तो कितना भला होगा हम सब का.
भक्तजनों मुझे पूरा विश्वास हे इन बातो पर और मैंने कई बाते सही में होते हुए भी देखि हे, पर आप में से अगर कुछ लोगो को विश्वास नहीं हे तो यह सोचिये की यह सब करने से आपका कोई नुकसान नहीं हे.
अगले अंक में चर्चा आगे बढ़ाएंगे.
जय श्री कृष्ण !!!
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