Sunday, September 26, 2010

Geeta chapter - 2.18

भक्तजनों दुसरे अध्याय के बचे हुए श्लोक में से कुछ मुख्य श्लोको पर हम चर्चा करेंगे. इन श्लोको के साथ ही दुसरे अध्याय की समाप्ति हो जाएगी.

तानी सर्वानी संयम्य युक्त आसीत मत्परः
वशे ही यस्येंद्रयानी तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता !!!
MEANING : साधक को अपनी इन्द्रियों को अपने वश में रखकर मुझपर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए क्योंकि जिसकी इन्द्रिया वश में होती हैं वो साधक चेतन्य अवस्था में स्थापित होता हे.

ध्यायतो विषयां पुंसः संग्स्तेशुपजयते
संगात्संजायते कामः कमात्क्रोधोभिजयते !!!
MEANING : विषय वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करने से उस वास्तु के प्रति आकर्षण पैदा होता हे, आकर्षण से मोह उत्पन होता हे और मोह से क्रोध.

क्रोधाद भवति सम्मोह सम्मोहत्स्म्रतिविभ्रमः
स्म्रतिभ्रन्षद बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रन्श्यती !!!
MEANING : क्रोध से माया(यहाँ पर माया से तात्पर्य हे illusion से), माया से स्मृति लुप्त होती हे और स्मृति के लुप्त हो जाने पर ज्ञान भी समाप्त होता हे और ज्ञान के न रहने पर हमारा अस्तित्व भी समाप्त हो जाता हे.

आपुर्यमानाम्चाल्प्रतिष्ठिथ
समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत !
तादात कम यम प्रविशन्ति सर्वे
सा शान्तिमाप्नोति न कामकामी !!!
MEANING : उस साधक को असीम शांति प्राप्त होती हे जिस पर किसी भी तरह की सुख सुविधा का कोई असर नहीं होता हे. जैसे कोई समुद्र हमेशा तृप्त और भरा रहता हे और कितनी भी नदिया आकर उसमे मिल जाये उस पर कोई असर नहीं होता.

एषा भ्रह्म्ही स्थितिः पर्थ नैनं प्राप्य विमुहती
स्थित्वस्यमंत्कालेपी भ्रह्मनिर्वन्म्रचाछाती !!!
MEANING : हे अर्जुन, ज्ञान प्राप्त हो जाने पर वो साधक फिर कभी मोह-माया के वश में नहीं आता हे और अपनी मृत्यु के समय भी वो परमात्मा में लीन रहता हे. ऐसे साधक को निश्चय ही मोक्ष की प्राप्ति होती हे.


भक्तजनों इन श्लोको में श्री कृष्ण कह रहे हैं की साधक को अपनी इन्द्रियों पर काबू रखना चाहिए और उस परमत्मा पर ध्यान केन्द्रित करके ध्यान लगाना चाहिए. ऐसे में सवाल आता हे की ध्यान तो मन को वश में करने का साधन हे, ध्यान तो किसी भी वस्तु पर लगाया जा सकता हे, तो फिर श्री कृष्ण उन पर ध्यान केन्द्रित करने को क्यों कह रहे हैं. महत्व तो इन्द्रियों को काबू में करने का हे, न की ध्यान की वस्तु का. फिर क्यों राम का ही ध्यान लगाया जाये और रावण का नहीं. इसका जवाब दुसरे श्लोक में मिलता हे की हम जिस किसी वस्तु पर भी ध्यान लगाते हे, उस वस्तु के गुण हम में आने लग जाते हे. इसीलिए पुराने ज़माने में या तो इश्वर की मूर्ति पर ध्यान लगाया जाता था या फिर दीपक की लौ पर क्योंकि दीपक की लौ को सबसे पवित्र माना जाता हे. जब विषय वस्तु पर ध्यान लगाया जाता हे तो उस वस्तु के प्रति आकर्षण पैदा होने लगता हे और जब आकर्षण पैदा होता हे तो इच्छाए उत्पन होने लग जाती हे. और अगर इच्छाए पैदा होने लग गयी तो फिर ध्यान लगाने का कोई मतलब ही नहीं रह गया. इच्छाओ को काबू करने के लिए ही तो ध्यान का सहारा लिया जाता हे.

जब इश्वर पर ध्यान लगाया जाता हे तो इन्द्रिया तो काबू में होती ही हैं, साथ ही साथ इश्वर वाले गुण आने लग जाते हैं. मन में इश्वर के प्रति आकर्षण पैदा होने लग जाता हे और मोक्ष की इच्छा और तीव्र होने लग जाती हे. इन्द्रियों के काबू में आ जाने से विषय वस्तु में कोई रूचि नहीं रहती, बस ध्यान में बैठे रहने का मन होने लगता हे. मन में असीम शांति रहती हे, न कोई दुःख और न कोई सुख, सिर्फ शांति रहती हे. और मन की शांति ही सबसे बड़ा सुख होता हे.

श्री कृष्ण कह रहे हैं की जो साधक इन्द्रियों को काबू में रख पाता हे उसे असीम शांति प्राप्त होती हे और फिर चाहे उसे सारा संसार ही क्यों न मिल जाये, वह उसे ठोकर मार कर इश्वर प्राप्ति को ही महत्व देता हे. जैसे समुद्र हमेशा तृप्त ही रहता, हमेशा अपने में मगन, कितनी भी नदिया उसमे मिल जाये लेकिन उसे कभी नदी की इच्छा नहीं होती, समुद्र में मिल जाने पर उस नदी का अता पता ही नहीं रहता हे. उसी तरह साधक होता हे, संसार की सुविधा से कही ज्यादा सुख उसके भीतर ही होता हे और बाहरी सुख उसमे आकर ऐसे गायब होता हे की कोई अता-पता ही नहीं रहता.

ऐसा साधक अपनी मृत्यु के समय भी चिंता मुक्त रहता हे, उसे मरने का कोई डर या दुःख नहीं होता। ऐसे साधक को निश्चय ही मोक्ष मिलता हे क्योंकि वो संसार में रहकर भी संसार का नहीं रहता.भक्तजनों पुराणों, वेदों में ध्यान की बड़ी महिमा बताई गयी हे. अगर आप में से कोई अध्यात्म को गंभीरता से लेना चाहता हे तो कोई बड़ा कदम उठाने की बजाय ध्यान से शुरुआत करना ठीक रहेगा. रोज़ १५ मिनट का ध्यान कुछ सालो में आपको बहुत फ़ायदा करेगा. यह एक ऐसी चमत्कारी विध्या हे जो भारत की तरफ से विश्व को एक अमूल्य तोहफा हे. इस विध्या को अगर हिन्दू ग्रंथो में नहीं बताया गया होता तो शायद विश्व को कभी इस विध्या के बारे में पता न चलता. इसलिए बहुत ज्यादा नहीं तो ५ मिनट ही करे लेकिन करे ज़रूर. और हाँ किसी चमत्कार की उम्मीद न करे, उसके लिए तो एक अलग ही जीवन को जीना पड़ता हे. वोह हम जैसे सांसारिक लोगो के बस का नहीं हे.

अगले अंक से तीसरे अध्याय के श्लोको की चर्चा शुरू करेंगे जिसमे हमारे वैदिक कर्तव्यों के बारे में बताया गया हे, जिसे हमे किसी भी युग और किसी भी हालत में निभाना ही पड़ता हे.


जय श्री कृष्ण !!!

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