बात करते हैं आगे के श्लोकों की !
न जायते म्रियते वा कदाचिन
नायं भूत्वा भविता वा न भुयावः
अजो नित्यः शाश्वतोयम पुरानो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे !!!
MEANING : आत्मा न कभी जन्म लेती है और न मरती है, न उसका शरिर के साथ जन्म होता है और न ही शरिर के मरने पर वह मरती है। आत्मा अमर है, अमित है और समय से परे है।
वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम
कथं स पुराशः पार्थ कम घातयति हन्ति कम !!!
MEANING : हे अर्जुन, जो व्यक्ति यह जानता है की आत्मा अमर है, अमिट है, वह मर नहीं सकती, वह व्यक्ति किसी की मृत्यु का कारण कैसे बन सकता है। और वह किसे मरता है।
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानी गृह्णाति नरो पराणी
तथाः शरीराणि विहाय जिर्नान्य नियानी संयति नवानी देहि !!!
MEANING : जिस तरह हम हमारे पुराने वस्त्र त्याग कर नए वस्त्र धारण करते हैं, उसी तरह जीवात्मा पुराने जीर्ण-शीर्ण शरिर को त्याग कर नए शरिर को धारण कर लेती है।
नैनं छिन्दन्ति शाश्त्रानी नैनं ढहती पावकः
नचैनम क्लेदंत्यापो न शोषयति मरुतः !!!
MEANING : आत्मा न शस्त्र से मर सकती है, न आग उसे जला सकती है, जल उसे गिला नहीं कर सकता और हवा उसे सुखा नहीं सकती।
अच्चेद्यो यम्धाह्यो यमक्लेध्यो शोष्य एव च
नित्यः सर्वगतः स्थानुर्च्लोयम सनातनम !!!
MEANING : आत्मा अमिट है, नित्य है, अचलायामन (immovable) है।
अव्यक्तो यम्चिंत्यो याम्विकार्यो यमुच्यते
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हासी !!!
MEANING : यह सिद्ध है की आत्मा अमर है, निर्विकार है, इसलिए आत्मा को इस रूप में जानकर दुखी होना तुम्हे शोभा नहीं देता।
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं व मन्यसे मृतं
तथापि तवं महाबाहो नैनं शोचितुमर्हसी !!!
MEANING : हे महा योद्धा अगर तुम यह भी सोचते हो की आत्मा जन्म लेती है और शरिर के साथ मरती है तब भी तुम्हे दुखी नहीं होना चाहिए।
जातस्य ही ध्रुवो मृत्युध्रुवं जन्म मृतस्य च
तस्माद्परिहर्येर्थे न तवं शोचितुमार्हसी !!!
MEANING : जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और जिसकी मृत्यु हुई है उसका जन्म निश्चित है, इसलिए ऐसी घटना पर शोक मानना ठीक नहीं जिसे टाला न जा सके।
अव्यक्तादीनि भूटानी व्यक्त्मध्यानी भारत
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना !!!
MEANING : हे अर्जुन जीव के जन्म से पहले की जानकारी नहीं होती है, जन्म के बाद और मृत्यु से पहले की जानकारी होती है। और फिर मृत्यु के बाद की जानकारी नहीं होती। इसलिए दुखी क्यों हो रहे हो।
अश्चार्यवत पश्यति कश्चिदेनम
आश्चर्यवाद वदति तथैव चान्यः
आस्चार्यावाचैन्मन्याह श्रुणोति
श्रुत्वाप्येनं वेड न चैव कश्चित् !!!
MEANING : कुछ लोग आत्मा को आश्चर्य से देखते हैं, कुछ उसकी आश्चर्य से चर्चा करते हैं, कुछ सुनते हैं की आत्मा बहुत निराली है। कुछ यह सब सुन ने के बाद भी उसके बारे में कुछ नहीं जानते हैं।
देहि नित्याम्वाध्योयम देहे सर्वस्य भारत
तस्मात् सर्वाणि भूतानि न तवं शोचितुमार्हसी !!!
MEANING : हे अर्जुन यह आत्मा जो हर शरिर में है वह अमर है, इसलिए तुम किसी भी जीव के लिए दुखी मत हो।
भक्तजनों इन श्लोको में श्री कृष्ण अर्जुन को आत्मा की अमरता के बारे में बड़े विस्तार से समझाते हैं। आत्मा न किसी शस्त्र से मर सकती है और न आग से जल सकती है। वह अमर है। वह न जन्म लेती है और मृत्यु को प्राप्त होती है। सवाल आता है की आत्मा में ऐसा क्या है की वह अमर है। क्यों शरिर नश्वर है और क्यों आत्मा किसी भी तरह से मर नहीं सकती है।
भक्तजनों किसी भी वस्तु के नष्ट होने के लिए दो कारणों में से किसी एक का होना जरुरी है। कोई भी वस्तु या तो उसी की तरह की किसी दूसरी वस्तु से ख़त्म हो सकती है या फिर उस वस्तु के उलट की किसी वस्तु से। जैसे आग पानी से बुझ सकती है और हीरे को हिरा ही काट सकता है। आग को आग नहीं जला सकती और हीरे को लोहा नहीं काट सकता। इस पूरी सृष्टि में हर वस्तु इस तरह किसी न किसी वस्तु से निरंतर नष्ट हो रही है। हमारे शरिर में कई बदलाव आते रहते हैं और लगातार कई सरे cells ख़त्म होते रहते है। कई साल बाद शरिर इतना बीमार हो गया होता है की मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। हर वस्तु का दूसरी वस्तु पर विपरीत प्रभाव पड़ता रहता है और इस पूरी सृष्टि में आप किसी भी वस्तु को सारी वस्तुओं से दूर नहीं कर सकते यह असंभव है और इसलिए उसका नष्ट होना टाला नहीं जा सकता।
इसके बिलकुल विपरीत आत्मा है। न आत्मा जैसी कोई दूसरी आत्मा है और नहीं आत्मा से अलग कुछ और इस सृष्टि में है। तो फिर आत्मा को नष्ट कौन कर सकता है। अपने आप कोई वस्तु नष्ट नहीं हो सकती। आप सोंच रहे होंगे की आत्मा से अलग हम लोग हैं तो सही, यह सूरज, चाँद वगैरह है तो सही। क्या आत्मा इनके संपर्क में आने के बाद नष्ट नहीं हो सकती। इसे समझने के लिए मैं आपको एक उधाहरण देता हु, आप वैसा ही imagine करिए।
मान लीजिये के एक विशाल समुद्र है। पानी से लाबा लब भरा हुआ। न सूरज है और न चाँद है और न ज़मीन है। उस समुद्र में कई बड़े बड़े बर्फ के टुकड़े तैर रहे हैं। हजारो लाखो टुकड़े तैर रहे हैं। किसी बर्फ के टुकड़े का आकार पहाड़ जैसा है तो किसी का मनुष्य जैसा, किसी का कोई जानवर जैसा। जब यह बर्फ के टुकड़े एक दुसरे से टकराते हैं तो टूट कर भिखर जाते हैं। समुद्र का तापमान बहुत कम है इसलिए बिखरे हुए टुकड़े फिर जुड़ जाते है। अब आप सोंचिये की पानी से एकदम अलग आकर और प्रकृति वाले कई बर्फ के टुकड़े उस समुद्र में तैर रहे हैं। लेकिन क्या यह टुकड़े उस समुद्र के पानी को नष्ट कर सकते हैं। नहीं कर सकते क्योंकि भले ही दिखने में वे अलग से लगते हो लेकिन वो है तो पानी ही। पुरे समुद्र में पानी ही पानी है और वो किसी और के संपर्क में आ ही नहीं रहा है तो फिर नष्ट कैसे होगा।
बस यही बात हम पर भी लागु होती है, हम लोग दिखने में भले ही अलग अलग लगते हो लेकिन हम सब उस आत्मा से ही बने हैं इसलिए हमारे मरने पर हमारे आकार बदल जाते हैं लेकिन उस से आत्मा में कोई फर्क नहीं आता है। सिर्फ आत्मा ही आत्मा है सब दूर। न सूरज है और न चाँद है और न कोई और वस्तु, सिर्फ आत्मा के अलग अलग आकार हैं बस। जब सब दूर सिर्फ आत्मा ही आत्मा है तो फिर वो नष्ट कैसे होगी और मृत्यु के बाद जाएगी कहाँ पर और जन्म कहाँ पर लेगी। वो तो अनंत है, किसी और वस्तु के लिए जगह ही नहीं है।
पिछले अंक में मैंने चर्चा की थी के आत्मा के अमर होने का ज्ञान होने पर भी दुःख नहीं मिटता है। और उसके लिए क्या करना चाहिए। श्री कृष्ण ने यहाँ तक आत्मा के सिद्धांत के बारे में बताया है और अगले अंक से हम कर्म के सिद्धांत पर चर्चा करेंगे। दुखों से पार होने का सबसे आसान तरीका।
जय श्री कृष्ण !!!
YOU ARE THE SOUL ,NOT THE BODY.WE HAVE CAUGHT THE WRONG IDENTITY OF "I AM SOMETHING".IF WE BREAK THIS IDENTITY WE WILL REACH " AHAM BRAHMASMI".TO REACH UPTO THAT DESTINY SAMADHI DHYAN IS MOST IMPORTANT.BY PRACTICING "SAMADHI" WE WILL ABLE TO UNDERSTAND THE BODY AND SOUL RELATIONSHIP VERY WELL.
ReplyDelete-----DEEPAK TRIVEDI