भक्तजनों पिछले अंक से चर्चा आगे बढ़ाते हैं और बात करते हैं की इश्वर को अपने कर्म कैसे समर्पित कर सकते है, कैसे फल की इच्छा के बिना कर्म कर सकते हैं।
भक्तजनों मुझसे किसी ने facebook पर सवाल किया था की वे भगवत गीता में लिखे अनुसार जीना चाहते हैं और क्या इसके लिए किसी गुरु की शरण में जाना सही रहेगा क्या। भक्तजनों जैसा की मैंने कई बार कहा है की एक दम से इतना बड़ा फैसला लेना सही नहीं है। यह बात सही है की गुरु बिन हरी नहीं मिलते लेकिन उसके लिए बहुत तय्यारी करनी पड़ती है। इन सब बातो को ही हम कर्म योग में जानेंगे।
कर्म योग है क्या और हमारी कैसी मानसिकता होनी चाहिए जब हम कर्म योग को अपने जीवन में उतारना चाहते हैं। भक्तजनों आप यह तो जानते ही होंगे की हमारे हर कर्म का कोई फल होता है और उसे हमे भुगतना होता है। फिर वो कर्म चाहे हमसे अनजाने में हुआ हो या जानते भुजते। अगर भलाई की होगी तो अच्छा फल मिलेगा और अगर गलत काम किया होगा तो सजा। हमने यह भी चर्चा की थी की अच्छे कर्म का बंधन भी ठीक बात नहीं है। तो कर्म योग में हम यही जानेंगे की कर्म करते हुए भी हम कैसे उसके बंधन से मुक्त हो सकते है।
श्री कृष्ण कहते है की अगर हर कर्म इश्वर को समर्पित कर दिया जाये तो उस कर्म के बंधन में हम नहीं बंधते। इस बात को समझने के लिए हमे मनु स्मृति में लिखे हुए कुछ अंश का सहारा लेना पड़ेगा। उसमे भोजन बनाते और खाते वक़्त जो हमसे पाप होते हैं उनसे बचने का उपाय बताया गया है। उसमे कहा गया है जब भी आप खाना खाते हैं या उसे बनाते हैं तो उसे शुरू करने से पहले इश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए की यह भोजन तो आपके लिए लगाया जाने वाला भोग है और हम इसे प्रसाद समझकर खा रहे हैं। इश्वर को धन्यवाद् देना चाहिए की वे हमे भोजन उपलब्ध करवाकर हमारे जीवन यापन के लिए कृपा कर रहे हैं। भोजन को भी देवता मानकर उसके हाथ जोड़ने के बाद ही खाना चाहिए। एक तरह से कृतज्ञता जतानी चाहिए। यह भोजन आपको समर्पित है और हम आपके बाद ही उसे खाते हैं। ऐसा करने से घर में अनजाने में जो जीव-जंतु जो पानी पीते वक़्त या घर की सफाई करते हुए जो कीड़े मरते हैं या फिर भोजन बनाते हुए जो कीड़े मरते हैं उनका पाप हमे नहीं लगता। ऐसा मनु स्मृति में बताया गया है। ऐसा इसलिए है की हम भोजन हमारे स्वाद की तृष्णा के लिए नहीं बल्कि इश्वर को भोग लगाने के लिए बना रहे हैं और क्योंकि यह कर्म इश्वर को समर्पित है इसलिए इसको करते वक़्त जो भी पाप होता है उसका पाप हमे नहीं लगता। लेकिन भक्तजनों इस बात में ईमानदारी होनी चाहिए। अगर भोजन खाने से पहले इश्वर को भोग लगा रहे हैं तो पुरे मन से काम करे, ऐसा मानकर करे की सही में इश्वर ही खा रहे हैं और अगर आप ईमानदारी से ऐसा मानेंगे तो उन्हें मांसाहारी भोजन या फिर सात्विक भोजन के आलावा कुछ नहीं चढ़ाएंगे। अगर आप स्वाद के लिए तामसिक या मांसाहारी भोजन बनाकर सिर्फ इश्वर को भोग लगाने का नाटक करेंगे तो फिर पाप दुगना भोगना पड़ेगा। कर्म योग में ईमानदारी जरुरी है।
में आपको एक कथा सुनाता हु। एक ब्रह्मण का बच्चा होता है जिसे उनके ऋषि पिता बचपन से यह सिखाते हैं की खाने से पहले इश्वर को भोग लगाना चाहिए। वो बच्चा ऐसा ही करता है। कुछ साल बाद वोह बड़ा हो जाता है। एक दिन कोई उसके खाने में ज़हर मिला देता है। वो लड़का इश्वर को भोग लगता है और जब उसकी नज़र उस खाने के बर्तन पर जाती है तो उसके नीले पड़े हुए रंग से वो समझ जाता है की किसी ने इसमें ज़हर मिला दिया है। लेकिन वो यह सोंचता है की जब मेरे भगवन ने यह खा लिया तो में कैसे अब मना कर सकता हु और वो भोजन खा लेता है। लेकिन इश्वर तो ऐसे भक्त को कुछ होने ही नहीं दे सकते इसलिए वो बच जाता है। इसीलिए में कह रहा हु की ईमानदारी हो तो फिर ऐसी होनी चाहिए।
जैसा मैंने खाने के लिए कर्म योग को बताया है वैसा ही सारे कर्म करने के लिए करना चाहिए। यहाँ पर सवाल आता है की हम ईमानदारी से ऐसा करने की कोशिश कर सकते हैं लेकिन आज के ज़माने में कोई न कोई गलती हो ही जाती है तो फिर उस पाप से हम कैसे बचेंगे। इसी समस्या के लिए शाश्त्रो में बताया गया है की जब आपकी साडी कोशिशो के बाद भी आपसे कोई गलत काम हो रहा है तो आप इश्वर से प्रार्थना करे की हे प्रभु मेरा यह कर्म तो आपको समर्पित है लेकिन मेरे लाख चाहने पर भी में इस गलत काम को करने से बच नहीं पा रहा हु। ऐसा करने पर आप उस पाप से मुक्त हो जायेंगे। लेकिन अपने सही में ईमानदारी से उस गलत काम से बचने की कोशिश करी होनी चाहिए।
आप यह नहीं कह सकते की हे भगवन मेरी तो मज़बूरी है चोरी करना वरना मेरे बच्चे अच्छे घर में नहीं रह सकते, गाड़ी घोड़े नहीं चला सकते। ऐसा करोगे तो बहुत पाप लगेगा। पहले ईमानदारी से सारे काम करने की कोशिश करनी चाहिए और अगर कोई रास्ता ही नहीं बचा हो और अगर आपके बच्चे बिलकुल मरने की हालत में पहुँच गए हो तभी आप कोई गलत काम कर सकते है और उसका प्रायश्चित भी आपको करना चाहिए। इश्वर से माफ़ी मांगना आपके लिए गलत काम करने का बहाना नहीं बनना चाहिए।
और क्योंकि आप हर काम इश्वर को समर्पित कर रहे हो इसलिए सिर्फ अच्छे काम ही आप कर सकते हैं। जिस तरह से भोजन सिर्फ सात्विक ही बनाना चाहिए उसी तरह से काम भी धार्मिक और कर्त्तव्य पूर्ण होने चाहिए। यह नहीं की पुरे दिन मौज मस्ती लगा रखी हो और फिर यह उम्मीद करे की इश्वर हमारा बेडा पार करेंगे। जितना यह सब समझने में आसान लगता है उतना करने में मुश्किल है। भोजन जैसी चीजो से शुरू करके धीरे धीरे सारे कामो को सुधारना चाहिए। कई लोग इसे भोजन तक ही सीमित रखते है और जब वे अपने परिवार की और समाज की जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते है तो उसके बाद वे अपने दुसरे कामो को सुधरने के कोशिश शुरू करते हैं। यानि की बुढ़ापे में। लेकिन उसके लायक नीव वे अपनी जवानी के दिनों से ही डाल लेते है ताकि बुढ़ापे में यह सब करने में ज्यादा मुश्किल न हो। इसे वर्ण व्यवस्था कहते है जो हम जैसे ग्रहस्थो के लिए ऋषि मुनियों ने बनायीं थी। इसके बारे में हम और कभी चर्चा करेंगे।
कर्म योग मतलब आपका हर कर्म अच्छा हो और इश्वर समर्पित हो। शरीर को मंदिर समझे, खाने को इश्वर को लगने वाला भोग, अपने ऑफिस के काम को इश्वर की पूजा समझकर करे। इस तरह आपका हर कर्म इश्वर को समर्पित हो जायेगा। लेकिन जैसा मैंने कहा की अगर आप अपने काम इश्वर के काम मानकर करते है तो फिर उसमे वोह ईमानदारी और भक्ति भी होनी चाहिए।
अगले अंक में श्लोक पर चर्चा होगी।
जय श्री कृष्ण !!!
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