Sunday, July 25, 2010

Geeta chapter - 2.10

भक्तजनों पिछले अंक से चर्चा आगे बढ़ाते हैं और बात करते हैं की फल की इच्छा का क्या महत्व है
कर्म के सिद्धांत पर खास तौर पर कई सारे सवाल खड़े हो जाते हैंपहला तो यह की अगर इच्छा नहीं रखेंगे तो कर्म करने में मन नहीं लगेगा। मान लीजिये की अगर कोई विद्ध्यार्थी (student) परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने की इच्छा नहीं रखेगा तो उसका पढाई से मन ही हट जायेगा। जब तक की उसके मन में 80-90% marks लाने की इच्छा नहीं होगी तो वोह पढाई करेगा ही क्यों। इसी तरह हर काम में इच्छा ही driving factor होती है नहीं तो काम करने का कोई मतलब ही नहीं रह जाता है।

अगर ऐसे सवाल मन में आते हैं तो इसका मतलब है की कर्म के सिद्धांत को सही तरीके से समझा नहीं गया है। जैसा की श्री कृष्ण समझा रहे हैं की इच्छा नहीं रखने पर फल की गुणवत्ता में कोई फर्क नहीं आता है । फल फिर भी उच्च कोटि का ही होता है। ऐसा कैसे संभव है। ऐसा इसलिए होता है की हम समझते है की फ़र्ज़ निभाने का मतलब है की जबरन कोई काम करो । मन लगे न लगे बस बे-मन से उस काम को करदो। लेकिन इसे फ़र्ज़ निभाना नहीं कहते। अगर कोई विद्ध्यार्थी है तो उसका फ़र्ज़ सिर्फ पढाई करने तक ही नहीं सिमित होता है बल्कि उस काम को उच्च दर्जे से ख़त्म करना भी उसका फ़र्ज़ होता है। विद्ध्यार्थी का फ़र्ज़ होता है जी-जान से पढाई करना और फल को इश्वर की मर्ज़ी पर छोड़ देना। मतलब अच्छी तरह से तय्यारी करो और परीक्षा दो। कितने marks आएंगे इसे इश्वर की मर्ज़ी पर छोड़ दो। इस तरह न तो पढाई से मन हट ता है और न तो फल की गुणवत्ता में कोई कमी आती है। अगर कोई राजा है तो प्रजा का जी-जान से पालन-पोषण करना उसका फ़र्ज़ होता है, न की सिर्फ राजा बनकर सुख भोग करना। इसी तरह से business/games/sex/etc etc सब में यही सिद्धांत लागु होता है।

जो भी result आता है उसे पुरे मन से स्वीकार करे
अगर परीक्षा में 90% marks मिल गए तो इश्वर की कृपा समझकर घमंड न करें और अगर fail हो गए तो इश्वर की मर्ज़ी समझकर फिर से जी-जान से पढाई में जुट जाएँ। वैसे भी फल की चिंता करते तो फल बदल तो जाता नहीं, आपने तो पूरी जान लगा दी थी। तो फिर उसे इश्वर को समर्पित करने से उसकी गुणवत्ता कैसे कम हो जाती। बल्कि आपका तो यह फ़ायदा होता की आप उस फल के बंधन से मुक्त हो जाते। इस तरह आप फल के प्रति सम भाव रख पाते हैं। न जितने पर घमंड होता है और न हारने पर दुःख
आगे श्री कृष्ण कहते है की अगर थोड़ी सी भी कोशिश सही तरीके से करी जाये तो बहुत बड़े नुकसान से बच सकते हैं। इसलिए ऐसी कोशिश हम छोटे छोटे कामो में करके देख सकते हैं। शुरुवात करेंगे तो ही उसके असर के बारे में पता चल पायेगा। कोशिश ही नहीं करेंगे तो अभी जो हालत है वैसी की वैसी ही रह जाएगी।
एक बात और है जिसकी चर्चा नहीं की। अगर कोई गलत काम फल की इच्छा के बिना किया जाये तो क्या हम फल के बंधन से मुक्त हो सकते है। क्या हमे उस कर्म की सजा से माफ़ी मिल सकती है। तो सबसे पहले इस बात में वही झलक दिख रही है। ज्ञान और logic के बिच की लड़ाई। मैंने मेरे शुरू के ब्लॉग में इसी पर एक लेख लिखा था। logic (तर्क) में और ज्ञान में यही फर्क होता है। यह बात सिर्फ तार्किक तौर पे संभव सि दिखती है की गलत काम इच्छा के बिना किया जा सकता है। इसमें ज्ञान की झलक नहीं दिखती। पहले तो यह की गलत काम फ़र्ज़ के उलट होता है। मनुष्य के जो फ़र्ज़ बताये गए हैं उनमे सिर्फ सही कर्म को ही गिना गया है। गलत काम के पीछे सिर्फ दो कारण ही हो सकते हैं, या तो भोग की इच्छा या फिर मज़बूरी। अगर मज़बूरी है तो उसके लिए प्रायश्चित का विधान है शास्त्रों में और वैसा करने पर कर्म के फल से मुक्त हो जाते है और अगर भोग गलत काम की वजह है तो फिर तो भगवान ही मालिक है।
श्री कृष्ण ने इस सिद्धांत को योग माना है। और वे कहते हैं की इस तरह से अगर practice की जाये तो मनुष्य में अलौकिक चेतना आती है जिसकी मदत से मनुष्य कर्म के बंधन से मुक्त हो जाता है। दूसरा यह की ऐसे योग में ध्यान सिर्फ इश्वर पर रहता है। हम सब कुछ वैसा ही करते है जो कोई भी आम इन्सान करता है लेकिन हमारा ध्यान कभी इश्वर से भटकता नहीं है जबकि आम इन्सान कई सारी भोग की वस्तुओ में उलझ कर रह जाता है।

भक्तजनों यह सब कितना भी मुश्किल लगे लेकिन यही सच्चाई है। हमने अपने आप को ऐसा बना लिया है की हमे यह सब मुश्किल लगता है लेकिन इस दुनिया में कई लोग ऐसे हैं जो यह सब बड़ी आसानी से कर लेते हैं। आज कई research इन बातो पर हो रही है और कई सारी बातें सच भी साबित हो गयी हैं। इसलिए विश्वास रखना ज़रूरी है। यह बात सही है की एकदम से यह सब कर पाना मुश्किल है लेकिन कोशिश तो की ही जा सकती है। छोटी छोटी कोशिश भी बड़े बड़े काम कर सकती है।

अगले अंक में सिर्फ एक श्लोक पर चर्चा करेंगे क्योंकि वोह श्लोक आज के लोगों पर बिलकुल सही fit होता। जो लोग ऐसे धार्मिक ग्रंथो के साथ खिलवाड़ करते है उनके लिए वोह एक चेतावनी है।

मुझे पता है की आप में से कई लोगों को अभी भी कुछ बातें समझमे नहीं आई होंगी। लेकिन अभी बहुत से श्लोक आगे के अंको में आयेंगे जो इन सिद्धांतो पर और रौशनी डालेंगे।


जय श्री कृष्ण !!!

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