भक्तजनों इस अंक में हम बात करेंगे उस श्लोक की जो आज के ज़माने के लोगों पर बिलकुल fit होता है और आपको हमेशा याद रखना है। जब भी आप कोई धार्मिक ग्रन्थ पढ़ें तो इस श्लोक को ज़रूर याद रखें।
यामिमां पुष्पितं वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः
वेदवादर्तः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः !!!
MEANING : हे अर्जुन जो लोग अज्ञानी हैं और जिनकी समझ सीमित है, वे लोग धार्मिक ग्रंथो का मन-माफिक मतलब निकालते है। हमेशा इस बात की तरफदारी करते हैं की सृष्टि के निर्माण में कोई अलौकिक कारण नहीं है। मन में भोग-वासना होते हुए यह लोग सुख-भोग के लिए वैदिक ग्रंथों में से केवल उन श्लोकों को बढ़ा चढ़ा कर लोगों के सामने पेश करते हैं जो इन्हें अच्छे लगते हैं। ऐसे लोग यज्ञ आदि कर्मकांड भी इसीलिए करवाते हैं की इन्हें अच्छी संतान, दौलत, शोहरत, और कई सांसारिक सुख मिल सके।
भक्तजनों इस श्लोक में श्री कृष्ण साफ़ साफ़ हम जैसे अज्ञानी लोगों की तरफ इशारा कर रहे हैं। हम लोग जो हमारे आलस्य, और सांसारिक सुख-भोग के लिए हर वैदिक कर्मकांड का तोड़-मरोड़ कर अर्थ निकालते हैं ताकि हमे पूजा-पाठ नहीं करना पढ़े, मंदिर नहीं जाना पढ़े, etc etc. खैर यह सब तो छोटी छोटी गलतियाँ हैं जो थोड़ी सी कोशिश करने पर सुधारी जा सकती हैं। लेकिन आजकल तो धार्मिक ग्रंथों का ऐसा इस्तेमाल होने लगा है की बस। जिसकी जो मर्ज़ी आई वो उसका वैसा मतलब निकालता है। लोगो की और समाज की भलाई की कोई परवाह नहीं है।
आजकल एक नया trend शुरू हो गया है। धार्मिक ग्रंथों को modernize करने का। उनके अर्थ को dilute करने का। अरे भाई जब वेदों को अटल सत्य माना है तो उनके मतलब को बदल कर बताना कहाँ तक ठीक है। जो बात अटल है वो किसी भी ज़माने में बदलेगी नहीं, वर्ना उन बातों पर विश्वास ही नहीं होगा। ढोंगी लोग लोगों की श्रद्धा के साथ खिलवाड़ कर रहे है, कोई business के लिए श्लोको और घटनाओ को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहा है तो कोई किसी और बात के लिए। सही बात करने वाले को दकियानूसी और पुराने ख़यालात का बता दिया जाता है.
कुछ लोग धार्मिक ग्रंथो में से सिर्फ उन बातों को समझते हैं जिसमे स्वर्ग के सुख भोग के बारे में बताया जाता है। आज की बात और है क्योंकि आज कोई स्वर्ग वगैरह को मानता नहीं है लेकिन जिस समय इन बातों का महत्व था उस समय लोग स्वर्ग जाने के लिए कई यज्ञ आदि करवाते थे। जबकि वेद इस बात को साफ़ साफ़ कहते है की उस परमात्मा में विलीन होने से पूर्व जितने भी सुख मिलते हैं वोह सब कुछ समय के लिए ही रहेंगे और एक दिन फिर पृथ्वी लोक में ही जन्म लेना पड़ेगा। फिर चाहे ब्रह्मलोक ही क्यों न हो। उस समय जो लोग इस तरह के यज्ञ नहीं करवाते थे उन्हें उस समय का समाज "सीधा" मानता था जो जिंदगी में तकलीफ उठाते हैं मोक्ष के लिए। अपने लाभ के लिए धर्म कार्य नहीं करते।
ज़माना बदल गया और धीरे धीरे लोग यज्ञ के कई रहस्य भूल गए और फलस्वरूप यज्ञ करवाना ही बंद कर दिया। लेकिन धार्मिक ग्रन्थ का अपने फयिदे के लिए इस्तेमाल करना नहीं छोड़ा।
आज कई लोग हैं जो भोले भले लोगों से पैसे ठगने के लिए ग्रंथो का इस्तेमाल करते हैं। कई ढोंगी बाबा इस तरह खूब पैसे कमाते हैं। यह तो हुई सीधे सीधे चोरी की बात लेकिन कई लोग तो अनजाने में भी धार्मिक ग्रंथो का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं।
आज आप देखेंगे तो कुछ विदेशी universities में bible, गीता और कुछ धार्मिक ग्रंथो को management के छात्रो को management के गुर सिखाने के लिए पढाया जाता है। इन ग्रंथो में से सिर्फ वो श्लोक पढाये जाते हैं जो उनके मतलब के होते हैं, बाकि के श्लोकों का या तो मन-घडन्त मतलब निकाल लिया जाता है या फिर बताया ही नहीं जाता। श्री कृष्ण के युद्ध के लिए अर्जुन को तैयार करने की घटना को इतना बढ़ा चढ़ा दिया जाता है की कोई असली मतलब ही भूल जाये। छात्रो को समझाया जाता है की जिस तरह से श्री कृष्ण ने धर्म को सबसे ऊपर माना उसी तरह बिज़नस में सबसे ऊपर profit होता है। Jesus ने जिस तरह से भेड़ बकरियों से अपने जीवन को चलाया उसी तरह छोटी छोटी technology से बड़े बड़े बिज़नस के मौके मिल सकते हैं। इस तरह से बिज़नस के कई फोर्मुले ग्रंथो के दुआरा सिखाया जाता है। उन छात्रों को यह नहीं बताया जाता है की जिन कृष्ण की युद्ध वाली बात को वे इतना पसंद कर रहे है उन्ही कृष्ण ने पहले दुर्योधन के सामने यह प्रस्ताव रखा था की वे उनकी सेना की तरफ से लड़ेंगे। लेकिन दुर्योधन के मना करने के बाद ही वे अर्जुन की सेना में शामिल हुए थे।
खैर वो मैनेजमेंट के लोग जान-बुज कर धार्मिक ग्रथो के साथ खिलवाड़ नहीं करते, उनका मकसद तो छात्रों को पढाना होता है लेकिन धार्मिक ग्रन्थ श्रद्धा के योग्य है उनका इस तरह का इस्तेमाल उनके प्रति श्रद्धा को कम कर देगा।
जो ग्रन्थ घर पर पूजनीय होता है वोह किसी library में timepass की किताब बन कर रह जायेगा।
जब खुद श्री कृष्ण यह बात कह रहे हैं की वेदों का सिर्फ एक ही मकसद है और वो है मुक्ति का रास्ता दिखाना तो फिर हम कौन होते हैं जो उन बातो का दूसरा ही मतलब निकालते हैं। आज के ज़माने में यह नहीं चलेगा, वोह नहीं चलेगा, इस तरह की बेकार की बातो में क्या रखा है। हमने अपने आपको ऐसा बना लिया है इसलिए हमारे लिए कुछ नहीं चलता वर्ना तो वेदों की बाते हर युग के लिए है न की सिर्फ उस समय का लिए।
ज्यादा कुछ लिखने के लिए समय नहीं है लेकिन फिर भी आप लोगों को यह तो समझमे आ ही गया होगा की वेद पूजनीय होते हैं। उनका मतलब हमसे ज्यादा वोह ऋषि-मुनि समझते थे जिन्होंने उनके बारे में कई बाते लिखी हैं। पहले हम अपनी औकात उनके बराबर की करले फिर उनसे competition करने की सोचना चाहिए।
जय श्री कृष्ण !!!
No comments:
Post a Comment